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minority status for hindus: Hindus Minority Status: States Can Give Hindus Minority Status If They are In Minority There: Minority Welfare Schemes Not Unconstitutional: Centre Tells Supreme Court: हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की गुहार पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कौन से मंत्रालय का जवाब होगा, इसे स्पष्ट करे


Supreme Court News: देश के 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक (Minority Status to Hindus) का दर्जा दिए जाने की गुहार लगाई गई है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार (Central Government) से इस बात को स्पष्ट करने को कहा है कि कौन सी मिनिस्ट्री को इस मामले में जवाब दाखिल करना चाहिए। कोर्ट ने केंद्र सरकार को उस याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा था जिसमें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए गाइडलाइंस बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है।

सुप्रीम कोर्ट में जब मामले की सोमवार को सुनवाई हुई तो जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली बेंच को बताया गया कि इस मामले में केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने जवाब दाखिल किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऑफिस रिपोर्ट में कहा गया है कि गृह मंत्रालय का कहना है कि मामले में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय का यह मामला है।

सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें अभी मिनिस्ट्री का जवाब देखना है। इस पर हल्के फुल्के अंदाज में जस्टिस कौल ने कहा कि मीडिया में ये खबर है और लॉ ऑफिसर से पहले कई बार मीडिया में खबरें पहले होती हैं। कोर्ट ने कहा कि इस बात को लेकर कंफ्यूजन है कि इस मामले में कौन सी मिनिस्ट्री को जवाब दाखिल करना चाहिए। होम मिनिस्ट्री की ओर से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि इस मामले में होम मिनिस्ट्री का रोल नहीं है बल्कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय का रोल है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने जब मामले में सवाल किया तो सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह मामले को देखते हैं और इस मामले में जवाब दाखिल करेंंगे। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाल दी है।

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इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि राज्य की सीमा में धार्मिक व भाषाई आधार पर राज्य सरकार अल्पसंख्यक समुदाय घोषित कर सकती है। जैसे कर्नाटक ने उर्दू, तेलुगु, तमिल, मलयालम, हिंदी, कोंकणी, मराठी और गुजराती भाषाओं को अपनी सीमा में अल्पसंख्यक भाषा नोटिफाई किया है। वहीं, महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में यहूदियों को अल्पसंख्यक घोषित किया हुआ है। केंद्र का कहना है कि राज्य सरकारें अपनी सीमा में अल्पसंख्यक घोषित करने के लिए नोटिफिकेशन जारी कर सकती हैं।

केंद्र सरकार के मुताबिक बहाई, यहूदी और हिंदू धर्म के अनुयायी या वो जो राज्य में अल्पसंख्यक के तौर पर पहचान किए गए हैं उक्त राज्यों में अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित कर चला सकते हैं। केंद्र का कहना है कि अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम 1992 न तो अतार्किक है और न ही मनमाना है। यह संविधान के खिलाफ नहीं है।

याचिका में कहा गया है कि देशभर के 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। लेकिन, वह अल्पसंख्यकों की योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा जवाब दाखिल नहीं किए जाने पर केंद्र पर हर्जाना भी लगाया गया। पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा था और आखिरी मौका दिया था।

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याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने 1992 के अल्पसंख्यक आयोग कानून और 2004 के अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। याची का कहना है कि संविधान में अनुच्छेद-14 सबको समान अधिकार देता है। अर्टिकल 15 भेदभाव को निषेध करता है। याचिका में साथ ही गुहार लगाई गई है कि अगर कानून कायम रखा जाता है तो जिन 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं उन्हें राज्यवार स्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए ताकि उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ मिले।

दाखिल अर्जी में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने माइनॉरिटी एक्ट की धारा-2 (सी) के तहत मुस्लिम, क्रिश्चियन, सिख, बौद्ध और जैन को अल्पसंख्यक घोषित किया है। लेकिन, उसने यहूदी बहाई को अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया। साथ ही कहा गया है कि देश के 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ नहीं मिल रहा है।

याचिका में कहा गया कि लद्दाख, मिजोरम, लक्ष्यद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में हिंदू की जनसंख्या अल्पसंख्यक के तौर पर है। याची ने कहा कि इन राज्यों में अल्पसंख्यक होने के कारण हिंदुओं को अल्पसंख्यक का लाभ मिलना चाहिए लेकिन उनका लाभ उन राज्यों के बहुसंख्यक को दिया जा रहा है।



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