Sindhu Dhara

समाज की पहचान # सिंध की उत्पति एवं इतिहास<> सिंधी भाषा का ज्ञान <> प्रेणादायक,ज्ञानवर्धक,मनोरंजक कहानिया/ प्रसंग (on youtube channel)<>  सिंधी समाज के लिए,वैवाहिक सेवाएँ <> सिंधी समाज के समाचार और हलचल <>
रूस-यूक्रेन युद्ध से दुनिया में बदल जाएगा तेल का खेल? भारत समेत पूरी दुनिया में तेल के दाम क्यों बढ़ रहे हैं, समझिए : why oil prices increasing in india : russia ukraine war effect on world : how much russian oil and gas important for the world russia ukraine conflict updates


नई दिल्ली: सोवियत संघ के पतन के बाद के दशकों में दुनिया का एनर्जी मार्केट अनपेक्षित तरीके से बदला। रूस और उसके विशाल हाइड्रोकार्बन भंडार दुनिया के लिए उपलब्ध हो गए, जो पहले नहीं थे। इस तरह से रूस को एक भरोसेमंद सप्लायर समझा जाने लगा। वह प्राकृतिक गैस का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक बन गया। जी हां, दुनिया में रोज 98 मिलियन बैरल तेल (क्रूड कंडेंसेट और रिफाइन प्रोडक्ट्स) की आपूर्ति होती है जिसमें से अकेले रूस से ही 7.5 मिलियन की सप्लाई होने लगी। लेकिन ये हालात एक महीने पहले यानी रूस के यूक्रेन पर हमले (Russia Ukraine News) से पहले तक थे। अब दुनिया का एनर्जी मार्केट बदलता दिख रहा है।

एक हमले ने ये सब किया!
व्लादिमीर पुतिन ने रूस की सेना को यूक्रेन पर हमले का आदेश ऐसे समय में दिया जब वैश्विक ऊर्जा बाजार काफी व्यस्त था। पुतिन को अंदेशा रहा होगा कि पश्चिमी देश विरोध करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसकी बजाय जनभावना को देखते हुए तमाम देशों ने रूसी तेल और गैस पर अपनी निर्भरता पर फिर से सोचना शुरू कर दिया। अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया ने रूसी तेल का आयात रोक दिया या खत्म कर दिया। रूसी तेल से अपनी 8 फीसदी जरूरतें पूरी करने वाले यूके ने कहा है कि वह भी इस साल के आखिर तक आयात बंद करने जा रहा है। यूरोजोन में बैन के लिए मांग जोर पकड़ रही है। ट्रेडिंग कंपनियों के लिए रूसी तेल के खरीदार मिलने में मुश्किल हो रही है और रूसी डॉक्स पर तेल लोडिंग घट गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि यूक्रेन युद्ध वैश्विक ऊर्जा के नक्शे के कैसे बदलेगा?

Ukraine-Russia

तेल का खेल

Petrol Diesel Price: पांच किस्तों में ही डीजल हो गया 3.75 रुपये महंगा, जानें अपने शहर का दाम
अब रूस का क्या होगा?
अर्थशास्त्री और अमेरिकी एनर्जी एक्सपर्ट डैनिएल यर्गिन ने एक लेख में अनुमान लगाया है कि युद्ध के बाद रूस की एनर्जी पावर घटेगी। उन्होंने कहा कि फिलहाल वह एक महत्वपूर्ण सप्लायर बना हुआ है लेकिन निश्चित रूप से उसकी भूमिका घटने वाली है। लोगों की भावनाओं को अलग रखते हुए सरकारों को एक व्यावहारिक नजरिया अपनाना होगा। महामारी के दो साल के बाद दुनिया भारी महंगाई का सामना कर रही है। ऐसे में उस देश से सप्लाई बैन करने का सही समय नहीं है, जो सऊदी अरब के लगभग बराबर तेल का उत्पादन करता है। पहले ही, रूस पर प्रतिबंधों के चलते तेल की कीमतें आठ वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं। गैस की कीमतें भी 40 प्रतिशत बढ़ गई हैं।

Russia Ukraine War: इन जरूरी उत्पादों का खड़ा हो गया भारी संकट, दुनियाभर के लोगों के लिए होगी बड़ी चुनौती
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, रूस दुनिया में तेल (क्रूड, कंडेंसेट्स और लिक्विड प्रोडक्ट्स) का सबसे बड़ा निर्यातक है। सऊदी अरब के बाद यह क्रूड का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। प्रोडक्ट की कमी और दाम में बढ़ोतरी पर असर के बिना उन चीजों और कच्चे माल को रीप्लेस करना संभव नहीं है। यूरोप का उदाहरण ही ले लीजिए, ठंड से पहले उसे तेल और गैस का स्टॉक रखने की जरूरत होगी लेकिन कई यूरोपीय रिफाइनरियों में कुछ हिस्सेदारी रूसी कंपनियों की भी है और वे Druzhba ऑइल पाइपलाइन के साथ जुड़ी हैं।

Ukraine-Russia

तेल का आयात-निर्यात

अगर पाइपलाइन बंद होती है, तो इन रिफाइनरियों के लिए तेल समुद्र के रास्ते लाना होगा। लेकिन यूरोप के तेल आयात टर्मिनल इस स्थिति में नहीं हैं कि वे जल्द ही अतिरिक्त शिपमेंट का समन्वय कर सकें। इतना ही नहीं, वैकल्पिक रूप से मिडिल ईस्ट या अमेरिका से अतिरिक्त तेल और गैस का आयात पाइप सप्लाई की तुलना में काफी महंगा होगा।

Crude Oil From Russia: रूस-यूक्रेन युद्ध का पेट्रोल-डीजल के दाम पर क्या होगा असर? जानिए वहां से भारत आता है कितना कच्चा तेल!
भारत और चीन पर असर
ऐसे में क्या हो सकता है? यर्गिन कहते हैं कि अगले पांच वर्षों में यूरोप को रूसी गैस की बिक्री घटेगी। इस अवधि में सुरक्षा उपाय के तौर पर यूरोप को अक्षय ऊर्जा की क्षमता बढ़ानी होगी। फ्रांस और ज्यादा परमाणु संयंत्र लगाएगा। इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की बिक्री तेजी से बढ़ेगी लेकिन थोड़े समय के लिए कोयले का इस्तेमाल बढ़ सकता है। निश्चित रूप से, रूस गेम में बने रहना चाहेगा और वह चीन, भारत और दूसरे एशियाई देशों को अपनी आपूर्ति बढ़ाने की कोशिश करेगा। रूस का 20 फीसदी तेल निर्यात चीन को होता है। पिछले साल भारत ने अपनी जरूरतों का 3 फीसदी तेल रूस से खरीदा था। चीन और भारत दोनों देशों ने रूसी क्रूड की खरीद को पहले ही बढ़ा दिया है।

रूसी क्रूड को बैन करने के बावजूद जापान साखालिन-1 प्रोजेक्ट से सोकेल क्रूड का आयात जारी रख सकता है, जहां एक जापानी कंपनी Sodeco की हिस्सेदारी है। हालांकि रूस को पूर्व की ओर पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स भेजने में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इस तरह से परिवहन और डील करना जिसमें अमेरिकी डॉलर शामिल न हो, यह बड़ी बाधा होगी। अगर यूरोप आपूर्तियों के लिए मिडिल ईस्ट की तरफ रुख करता है, तो भारत और चीन जैसे नियमित ग्राहक देशों के लिए रेट बढ़ता है और दोनों एशियाई ताकतें डिस्काउंट रेट पर रूसी तेल की डील कर सकती हैं। इसमें सप्लायर की तरफ से शिपिंग की देखरेख करने के साथ ही इंश्योरेंस भी शामिल होगा।

Russia-Ukraine war: हर फिक्र को धुएं में उड़ाता… रूस-यूक्रेन युद्ध से किसको पड़ रहा फर्क
इस तरह से, दुनिया में तेल की आवाजाही की दिशा बदल सकती है। हालांकि यूक्रेन युद्ध लंबा खिंचा तो रूस के हितों पर गहरी चोट पहुंचेगी क्योंकि पश्चिमी तेल कंपनियां देश में उसके निवेश को बाधित कर सकती हैं। इसके अलावा आशंका इस बात की भी है कि प्रतिबंधों के डर से नए खरीदार भी नहीं मिलेंगे।

ऐसे में भारत समेत पूरी दुनिया को इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि तेल की कीमतें ऊपर ही रहेंगी। हां, ईरानी और वेनेजुएला से बैरल की सप्लाई शुरू होती है तो हालात बदल सकते हैं जिसके संकेत फिलहाल नहीं मिल रहे हैं। अभी तो दुनिया के एनर्जी पेंडुलम के केंद्र में रूस ही रहने वाला है।



Source link

By admin