हम आशा करते हैं कि चीन भारत के संबंध में एक स्वतंत्र नीति का पालन करेगा और अपनी नीतियों को अन्य देशों और अन्य संबंधों से प्रभावित नहीं होने देगा…चीन के साथ भारत का रिश्ता सामान्य नहीं है और जब तक सीमा पर स्थितियां सामान्य नहीं होतीं, रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर
दरअसल, पूर्वी लद्दाख में जब से भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई है और भारतीय सैनिकों ने चीन को गहरी चोट पहुंचाई, तब से भारत ने अपना रवैया बदल दिया है। भारत की ओर से अब चीन को लेकर कोई नरमी नहीं दिखाई जाती। जैसे ही कानून के खिलाफ ऐप काम करते मिले उन्हें बैन किया गया। कश्मीर पर पाकिस्तान की रस्म अदायगी बयान पर चीन ने सुर मिलाए तो भारत आए विदेश मंत्री को स्पष्ट शब्दों में आगाह किया गया।
वैसे, यह पहली बार नहीं था जब चीन ने कश्मीर पर बयान दिया है। 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर राज्य का दर्जा खत्म किया गया तो चीन भी अपना राग अलापने लगा था। भारत जानता है कि पाकिस्तान और चीन के बीच घनिष्ठ संबंध हैं। कश्मीर के एक हिस्से, पीओके पर पाकिस्तान का जबरन कब्जा है और उसने इसका एक बड़ा हिस्सा चीन को गिफ्ट में दे दिया है। पाकिस्तान और चीन मिलकर पीओके के रास्ते CPEC परियोजना पर काम कर रहे हैं। ऐसे में चीन जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानता।
चीन मामलों के जानकार और लेखक अवतार सिंह भसीन ने बीबीसी से कहा कि 1954 में चीन और भारत के बीच पंचशील समझौता हुआ था। यह समझौता तिब्बत और भारत के बीच आपसी संबंधों और व्यापार को लेकर था। रूडडाक और रवांग पैसेज लद्दाख को तिब्बत से जोड़ते थे, भारत ने इन रास्तों से तिब्बत में तीर्थयात्रा और व्यापार जारी रहने की बात कही लेकिन चीन ने इसे मानने से इनकार कर दिया। चीन ने उसी समय कह दिया था कि जम्मू-कश्मीर विवादित क्षेत्र है। कश्मीर के साथ-साथ चीन की बुरी नजर अरुणाचल प्रदेश पर भी रहती है।
एक नहीं, कई बार चीन कश्मीर पर पाकिस्तान के समर्थन में बयान दे चुका है। एक्सपर्ट यह भी कहते हैं कि चीन अलग-अलग मंचों पर कश्मीर पर बयान देकर क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहता है। यह भी सच है कि इस तरह की बयानबाजी से भारत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। गलवान में हिंसक झड़प के दो साल बाद चीन का कोई वरिष्ठ नेता भारत आया, तो यहां उसे स्वागत से ज्यादा कश्मीर पर फटकार मिली।
सवाल यह भी उठता है कि पाकिस्तान में कश्मीर पर भारत के खिलाफ बोलकर आखिरकार चीनी विदेश मंत्री भारत क्यों आए। एक्सपर्ट मानते हैं कि चीन समझ चुका है कि वह एशिया में अकेले बड़ा प्लेयर नहीं बन सकता। उसे भारत को साथ लेना होगा।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से भारत पर एक स्वतंत्र नीति का पालन करने और चीन के दृष्टिकोण को अन्य देशों से प्रभावित नहीं होने को कहा है। जयशंकर ने इस्लामाबाद में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की बैठक में कश्मीर पर चीन के विदेश मंत्री की टिप्पणी का साफतौर पर उल्लेख किया। भारत ने वांग की टिप्पणी पर दो टूक कहा कि अन्य देशों को जम्मू-कश्मीर पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि यह भारत का आंतरिक मामला है।
वांग के साथ बातचीत पर जयशंकर ने मीडिया से कहा, ‘हां, यह मुद्दा उठा। मैंने इसका जिक्र किया। मैंने उन्हें बताया कि हमें वह बयान आपत्तिजनक क्यों लगा। इसलिए, इस विषय पर लंबी चर्चा हुई। एक व्यापक संदर्भ भी था।’ उन्होंने कहा, ‘आप जानते हैं, मैंने उन्हें इस बात से अवगत कराया कि हमें उम्मीद थी कि चीन, भारत के संबंध में एक स्वतंत्र नीति का अनुपालन करेगा, और अपनी नीतियों को अन्य देशों और अन्य संबंधों से प्रभावित नहीं होने देगा।’
चीन के पाकिस्तान से घनिष्ठ संबंध हैं और इस्लामाबाद कश्मीर मुद्दे पर भारत को घेरने का असफल प्रयास करता रहा है। भारत का संदेश साफ है कि पाकिस्तान के प्रॉपगैंडा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।