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लोकसभा चुनाव 2024 UP : मायावती अखिलेश यादव प्रियंका गांधी की लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर रणनीति नहीं हो रही साफ योगी आदित्यनाथ और उनकी टीम चुनावी दौरों पर निकल चुकी है


लखनऊ: याद कीजिए जून 2013। गोवा अधिवेशन से पहले ही गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को केंद्र की राजनीति का चेहरा बनाने की कवायद शुरू हो गई थी। सीनियर नेताओं की नाराजगी के बीच जब गोवा की भारतीय जनता पार्टी की कार्यकारिणी के मंच से नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष बनाने का ऐलान हुआ, उसके बाद से नरेंद्र मोदी रुके नहीं। देश को छान मारा। हर राज्य गए। हर शहर को छूने की कोशिश की। लोकसभा चुनाव आते-आते माहौल बन चुका था। जमीनी स्तर पर भाजपा के कैडर मोदी के गुजरात मॉडल को जमीन पर उतारने के दावे कर रहे थे। वहीं, आरएसएस के स्वयंसेवक सत्ता परिवर्तन का बीज बो रहे थे। फिर जो हुआ, वह सभी ने देखा। अब बात करते हैं लोकसभा चुनाव 2024 की। देश में सत्ता परिवर्तन की बात शुरू हो गई है। माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन कहां? देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को ध्यान में रखकर देखेंगे तो आपको स्थिति की समझ साफ हो जाएगी। जमीन पर कौन उतर रहा है? उत्तर है भाजपा। हराना किसको है? उत्तर है भाजपा? हराएगा कौन? उत्तर, अब तक अनुत्तरित। जी हां, यही आज के समय में उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के तमाम हिस्सों में है।

उत्तर प्रदेश में जिन मुद्दों के सहारे समाजवादी पार्टी और उनका गठबंधन यूपी चुनाव 2022 में उतरा था, उसमें कुछ बदला नहीं है। मतलब, विपक्षी दलों को मुद्दे मिल नहीं रहे, या यूं कहें तो बनाने नहीं दिए जा रहे हैं। ऊपर से भाजपा की रणनीति के जाल में विपक्ष में घिरता दिख रहा है। आप देखेंगे कि यूपी की सबसे सक्रिय सीनियर राजनेताओं में से एक मायावती घर से निकल नहीं रहीं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ट्विटर से निकल नहीं पा रहे हैं। कांग्रेस ने तो शायद हथियार ही डाल दिए हैं। प्रियंका गांधी ने यूपी आना ही छोड़ दिया। पार्टी अब तक प्रदेश अध्यक्ष तक तय नही कर पाई है। वहीं, सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री से लेकर तमाम नेता जमीन पर उतर चुके हैं। दनादन दौरे जारी हैं। लोगों को सरकार (केंद्र की नरेंद्र मोदी और राज्य की योगी आदित्यनाथ) की नीतियों के बारे में बता रहे हैं। ऐसे में विपक्ष किन नीतियों के सहारे और आसरे केंद्र की राजनीति में वापसी करना चाहती है, वह अभी तय नहीं हो पाई है।

मायावती का खत्म नहीं हो पा रहा राजनीतिक ‘घर’वास!
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का राजनीतिक घरवास खत्म नहीं हो पा रहा है। लोकसभा चुनाव 2019 के बाद से वे राज्य के राजनीतिक परिदृश्य से लगभग गायब हैं। 15 जनवरी 1956 को जन्मीं मायावती अब 66 साल की हैं। कोविड काल के दौरान उन्होंने जमीन पर उतर कर राजनीति करना कम कर दिया था। यूपी चुनाव 2022 के दौरान उन्होंने ताबड़तोड़ दौड़े किए, लेकिन आखिरी समय में। इसका कोई फायदा बसपा को नहीं मिला। यूपी चुनाव भाजपा बनाम सपा होकर रह गई। भाजपा दोबारा सत्ता में लौटी तो फायदे में सपा भी रही। इस हार के बाद बसपा समीक्षाएं कर रही है। मायावती प्रेस कांफ्रेंस भी कर रही हैं, लेकिन सब घर से। जमीन पर उतरना तो दिख ही नहीं रहा। जमीन पर कार्यकर्ता अपनी तैयारियों में जुटे हैं, लेकिन नेता ही नहीं दिख रही।

Yogi in Rampur

रामपुर के कार्यक्रम में सीएम योगी आदित्यनाथ

प्रियंका गांधी ने यूपी आना ही छोड़ा
प्रियंका गांधी पर उत्तर प्रदेश की बड़ी जिम्मेदारी दी गई थी। उन्हें यूपी का प्रभारी बनाया गया। लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान पार्टी ने पूर्वी यूपी का प्रभार दिया गया। ज्योतिरादित्य सिंधिया पश्चिमी यूपी के बनाए गए थे। उन्होंने कुछ काम भी किया, लेकिन यूपी में कांग्रेस रायबरेली से सोनिया गांधी को ही जिताकर संसद तक ले जाने में कामयाब हो पाई। राहुल गांधी भी अमेठी सीट हार गए। यूपी चुनाव 2022 के दौरान उन्होंने ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ नारे के साथ कांग्रेस की जमीन मजबूत करने की कोशिश की। महिलाओं को 40 फीसदी सीटों पर खड़ा किया, लेकिन विधानसभा में कांग्रेस के महज 2 विधायक पहुंचे। विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद अजय कुमार लल्लू का प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा ले लिया गया। लेकिन, पार्टी 6 माह से प्रदेश अध्यक्ष के नाम को फाइनल नहीं कर पाई है।

प्रियंका गांधी आखिरी बार जून में लखनऊ आई थीं। दो दिवसीय दौरा था, लेकिन कोरोना के लक्षण के बाद पहले ही दिन वापस चली गईं। बाद में उन्होंने कोरोना होने की जानकारी दी। इसके बाद से उनका दौरा नहीं हो पाया है। अमेठी में हार के बाद से राहुल गांधी इक्का-दुक्का ही इस तरफ आते हैं। सोनिया गांधी अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों से वर्चुअली ही मिलती हैं। कांग्रेस की लोकसभा चुनाव 2024 की यूपी तैयारी को लेकर जमीन पर काम ही नहीं हो पा रहा है।

ट्विटर पर ही सरकार को घेर रहे अखिलेश
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ट्विटर पर ही सरकार को घेर रहे हैं। जमीन पर उतर नहीं पा रहे। रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उप चुनाव में भी नहीं उतरे थे। दोनों सीटें सपा का गढ़ मानी जाती थीं। अब भगवा झंडा लहरा रहा है। 2 सितंबर से 8 सितंबर तक के आंकड़ों को देखें तो पिछले एक सप्ताह में अखिलेश यादव ने 25 ट्वीट के जरिए सरकार पर हमले किए। अपनी राजनीतिक मुलाकातों के बारे में जानकारी दी। औसतन एक दिन में 3 से 4 ट्वीट। इसमें रीट्वीट शामिल नहीं है। सवाल यह उठता है कि ट्विटर पर सरकार को घेरने से सोशल मीडिया पर तो माहौल बनता है, लेकिन जमीन पर कार्यकर्ताओं को मोटिवेट करने के लिए उतरना जरूरी बताया जा रहा है। उनके सहयोगी रहे सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर कहते हैं कि अखिलेश यादव को एसी की आदत हो गई है। इस कारण वे जमीन पर नहीं उतर पा रहे हैं। सुभासपा और सपा के अलगाव का कारण भी राजभर का बयान रहा। इसमें उनका अखिलेश यादव को लगातार बाहर न निकलने को लेकर ताना मारना सबसे अहम रहा।

गौतमबुद्धनगर में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच केशव प्रसाद मौर्य

गौतमबुद्धनगर में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच केशव प्रसाद मौर्य

मंत्री-नेताओं समेत योगी मैदान में
यूपी के राजनीतिक मैदान में सीएम योगी आदित्यनाथ मंत्री और नेताओं के साथ मैदान में उतरे हुए हैं। आप देखिए, यूपी में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से एक दिन पहले भूपेंद्र सिंह चौधरी आजमगढ़ में कार्यक्रम कर रहे थे। जिला स्तरीय समीक्षा में भाग ले रहे थे। वहीं, उन्हें दिल्ली पहुंचने का कॉल आया। फिर उनकी प्रदेश अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हुई। भाजपा जीती सीटों पर पार्टी को मजबूत करने और 50 फीसद वोट शेयर से ऊपर पहुंचने की रणनीति पर काम रही है। वहीं, लोकसभा चुनाव 2019 और यूपी चुनाव 2022 में हारी सीटों पर जीत का समीकरण तैयार करने में जुट गई है। सीएम योगी स्वयं ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं। वहीं, उनके मंत्री भी साथ दे रहे हैं। सीएम और दोनों डिप्टी सीएम ने मिलकर सभी 75 जिलों को नापने का मास्टर प्लान तैयार कर लिया है। इसका असर निश्चित तौर पर कार्यकर्ताओं पर पड़ेगा।

सीएम योगी साधेंगे पश्चिमी यूपी
सीएम योगी आदित्यनाथ ने 25 जिलों को अपने जिम्मे रखा है। पश्चिमी यूपी को साधने की कोशिश करते वे दिख रहे हैं। उन्होंने किसान आंदोलन के बाद उपजे विरोध को शांत करने के लिए इन जिलों में अभियान को तेज करने का फैसला लिया है। उन्होंने सहारनपुर मंडल के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर एवं शामली, मेरठ मंडल के मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, हापुड़ और बागपत जिलों को अपने साथ रखा है। इन जिलों में उनका कार्यक्रम शुरू भी हो चुका है। सीएम योगी आदित्यनाथ मुरादाबाद मंडल के मुरादाबाद, रामपुर, अमरोहा, बिजनौर एवं संभल, अलीगढ़ मंडल के अलीगढ़, एटा, कासगंज एवं हाथरस, वाराणसी मंडल के वाराणसी, गाजीपुर, जौनपुर एवं चंदौली और आजमगढ़ मंडल के आजमगढ़, बलिया और मऊ जिले का दौरा करेंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ इन जिलों में हारी बूथों को जीतने की रणनीति कार्यकर्ताओं को समझा रहे हैं।

Brajesh Pathak Mainpuri

मैनपुरी में कार्यकर्ताओं के बीच डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक

दोनों डिप्टी सीएम के पास भी अहम जिम्मेदारी
प्रदेश के दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक के पास अहम जिम्मेदारी है। दोनों को 25-25 जिलों के भ्रमण करने हैं। दोनों ने अपने कार्यक्रम शुरू भी कर दिए हैं। केशव प्रसाद मौर्य को कानपुर मंडल के कानपुर नगर, कानपुर देहात, कन्नौज, इटावा, औरैया और फर्रुखाबाद जिले की जिम्मेदारी दी गई है। इसके अलावा वे झांसी मंडल के झांसी, ललितपुर एवं जालौन, चित्रकूट मंडल के बांदा, चित्रकूट, महोबा एवं हमीरपुर, प्रयागराज मंडल के प्रयागराज, कौशांबी, फतेहपुर एवं प्रतापगढ़, मिर्जापुर मंडल के मिर्जापुर, भदोही एवं सोनभद्र और अयोध्या मंडल के अयोध्या, बाराबंकी, अंबेडकरनगर, सुल्तानपुर और अमेठी जिलों का दौरा कर वहां के कार्यकर्ताओं का मोबिलाइज करेंगे।

दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक को गोरखपुर मंडल के गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर और देवरिया जिले की अहम जिम्मेदारी दी गई है। इसके अलावा वे बस्ती मंडल के बस्ती, सिद्धार्थनगर एवं संतकबीरनगर, देवीपाटन मंडल के गोंडा, बलरामपुर, बहराइच एवं श्रावस्ती, आगरा मंडल के आगरा, मथुरा, फिरोजाबाद एवं मैनपुरी, बरेली मंडल के बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर एवं पीलीभीत और लखनऊ मंडल के लखनऊ, रायबरेली, उन्नाव, हरदोई, सीतापुर और लखीमपुर खीरी में पार्टी के कामकाज की बात करेंगे। कार्यकर्ताओं को बूथ जीतने की तकनीक बताएंगे। उनके कार्यक्रम भी शुरू हो चुके हैं।

Bhupendra Chaudhary Kanpur

कानपुर में कार्यकर्ताओं के बीच भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी

रणनीति का अभाव सबसे बड़ी परेशानी
विपक्ष के सामने रणनीति का अभाव सबसे बड़ी परेशानी है। भाजपा सरकार में है। जमीन पर उतर रही है। लोगों के बीच पहुंच रही है। अपनी और सरकार की बात पहुंचा रही है। लेकिन, विपक्षी दल के नेता सोशल मीडिया के भरोसे बदलाव की कोशिशों में जुटे हैं। बूथ और पंचायत तो छोड़िए, कई विकास खंड स्तर पर भी प्रमुख विपक्षी राजनीति दलों का संगठन नहीं दिखता है। ऐसे में जनता के बीच विपक्षी नेता अपने मुद्दों को कैसे पहुंचाएंगे? यह सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है। दिल्ली और लखनऊ में बैठकर रणनीति तैयार तो की जा रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर उन रणनीति के तहत काम करने वालों का अभाव विपक्षी दलों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बना हुआ है। आप देख लीजिए, प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से भाजपा के भूपेंद्र चौधरी लगातार दौरों पर हैं। कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचकर सकारात्मक संदेश दे रहे हैं।

आखिरी के छह माह या तीन माह में कोई चमत्कार के जरिए चुनाव जीता जा सकता तो लोकसभा चुनाव 2019 में सपा और बसपा का प्रभावी गठबंधन का क्या हाल हुआ, देखा जा सकता है। कागजों पर वोट समीकरण के हिसाब से देखें तो सपा के करीब 30 फीसदी और बसपा के 25 फीसदी वोट बैंक मिलाकर जीत का अंतर बड़ा दिखता है। लेकिन, जमीन पर समीकरण को उतारने वाले कार्यकर्ताओं के अभाव ने अंतर पैदा किया। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर विपक्षी राजनीतिक दल इसी प्रकार की गलती दोहराते दिख रहे हैं।



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By admin