मायावती का खत्म नहीं हो पा रहा राजनीतिक ‘घर’वास!
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का राजनीतिक घरवास खत्म नहीं हो पा रहा है। लोकसभा चुनाव 2019 के बाद से वे राज्य के राजनीतिक परिदृश्य से लगभग गायब हैं। 15 जनवरी 1956 को जन्मीं मायावती अब 66 साल की हैं। कोविड काल के दौरान उन्होंने जमीन पर उतर कर राजनीति करना कम कर दिया था। यूपी चुनाव 2022 के दौरान उन्होंने ताबड़तोड़ दौड़े किए, लेकिन आखिरी समय में। इसका कोई फायदा बसपा को नहीं मिला। यूपी चुनाव भाजपा बनाम सपा होकर रह गई। भाजपा दोबारा सत्ता में लौटी तो फायदे में सपा भी रही। इस हार के बाद बसपा समीक्षाएं कर रही है। मायावती प्रेस कांफ्रेंस भी कर रही हैं, लेकिन सब घर से। जमीन पर उतरना तो दिख ही नहीं रहा। जमीन पर कार्यकर्ता अपनी तैयारियों में जुटे हैं, लेकिन नेता ही नहीं दिख रही।

रामपुर के कार्यक्रम में सीएम योगी आदित्यनाथ
प्रियंका गांधी ने यूपी आना ही छोड़ा
प्रियंका गांधी पर उत्तर प्रदेश की बड़ी जिम्मेदारी दी गई थी। उन्हें यूपी का प्रभारी बनाया गया। लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान पार्टी ने पूर्वी यूपी का प्रभार दिया गया। ज्योतिरादित्य सिंधिया पश्चिमी यूपी के बनाए गए थे। उन्होंने कुछ काम भी किया, लेकिन यूपी में कांग्रेस रायबरेली से सोनिया गांधी को ही जिताकर संसद तक ले जाने में कामयाब हो पाई। राहुल गांधी भी अमेठी सीट हार गए। यूपी चुनाव 2022 के दौरान उन्होंने ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ नारे के साथ कांग्रेस की जमीन मजबूत करने की कोशिश की। महिलाओं को 40 फीसदी सीटों पर खड़ा किया, लेकिन विधानसभा में कांग्रेस के महज 2 विधायक पहुंचे। विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद अजय कुमार लल्लू का प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा ले लिया गया। लेकिन, पार्टी 6 माह से प्रदेश अध्यक्ष के नाम को फाइनल नहीं कर पाई है।
प्रियंका गांधी आखिरी बार जून में लखनऊ आई थीं। दो दिवसीय दौरा था, लेकिन कोरोना के लक्षण के बाद पहले ही दिन वापस चली गईं। बाद में उन्होंने कोरोना होने की जानकारी दी। इसके बाद से उनका दौरा नहीं हो पाया है। अमेठी में हार के बाद से राहुल गांधी इक्का-दुक्का ही इस तरफ आते हैं। सोनिया गांधी अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों से वर्चुअली ही मिलती हैं। कांग्रेस की लोकसभा चुनाव 2024 की यूपी तैयारी को लेकर जमीन पर काम ही नहीं हो पा रहा है।
ट्विटर पर ही सरकार को घेर रहे अखिलेश
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ट्विटर पर ही सरकार को घेर रहे हैं। जमीन पर उतर नहीं पा रहे। रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उप चुनाव में भी नहीं उतरे थे। दोनों सीटें सपा का गढ़ मानी जाती थीं। अब भगवा झंडा लहरा रहा है। 2 सितंबर से 8 सितंबर तक के आंकड़ों को देखें तो पिछले एक सप्ताह में अखिलेश यादव ने 25 ट्वीट के जरिए सरकार पर हमले किए। अपनी राजनीतिक मुलाकातों के बारे में जानकारी दी। औसतन एक दिन में 3 से 4 ट्वीट। इसमें रीट्वीट शामिल नहीं है। सवाल यह उठता है कि ट्विटर पर सरकार को घेरने से सोशल मीडिया पर तो माहौल बनता है, लेकिन जमीन पर कार्यकर्ताओं को मोटिवेट करने के लिए उतरना जरूरी बताया जा रहा है। उनके सहयोगी रहे सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर कहते हैं कि अखिलेश यादव को एसी की आदत हो गई है। इस कारण वे जमीन पर नहीं उतर पा रहे हैं। सुभासपा और सपा के अलगाव का कारण भी राजभर का बयान रहा। इसमें उनका अखिलेश यादव को लगातार बाहर न निकलने को लेकर ताना मारना सबसे अहम रहा।

गौतमबुद्धनगर में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच केशव प्रसाद मौर्य
मंत्री-नेताओं समेत योगी मैदान में
यूपी के राजनीतिक मैदान में सीएम योगी आदित्यनाथ मंत्री और नेताओं के साथ मैदान में उतरे हुए हैं। आप देखिए, यूपी में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से एक दिन पहले भूपेंद्र सिंह चौधरी आजमगढ़ में कार्यक्रम कर रहे थे। जिला स्तरीय समीक्षा में भाग ले रहे थे। वहीं, उन्हें दिल्ली पहुंचने का कॉल आया। फिर उनकी प्रदेश अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हुई। भाजपा जीती सीटों पर पार्टी को मजबूत करने और 50 फीसद वोट शेयर से ऊपर पहुंचने की रणनीति पर काम रही है। वहीं, लोकसभा चुनाव 2019 और यूपी चुनाव 2022 में हारी सीटों पर जीत का समीकरण तैयार करने में जुट गई है। सीएम योगी स्वयं ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं। वहीं, उनके मंत्री भी साथ दे रहे हैं। सीएम और दोनों डिप्टी सीएम ने मिलकर सभी 75 जिलों को नापने का मास्टर प्लान तैयार कर लिया है। इसका असर निश्चित तौर पर कार्यकर्ताओं पर पड़ेगा।
सीएम योगी साधेंगे पश्चिमी यूपी
सीएम योगी आदित्यनाथ ने 25 जिलों को अपने जिम्मे रखा है। पश्चिमी यूपी को साधने की कोशिश करते वे दिख रहे हैं। उन्होंने किसान आंदोलन के बाद उपजे विरोध को शांत करने के लिए इन जिलों में अभियान को तेज करने का फैसला लिया है। उन्होंने सहारनपुर मंडल के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर एवं शामली, मेरठ मंडल के मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, हापुड़ और बागपत जिलों को अपने साथ रखा है। इन जिलों में उनका कार्यक्रम शुरू भी हो चुका है। सीएम योगी आदित्यनाथ मुरादाबाद मंडल के मुरादाबाद, रामपुर, अमरोहा, बिजनौर एवं संभल, अलीगढ़ मंडल के अलीगढ़, एटा, कासगंज एवं हाथरस, वाराणसी मंडल के वाराणसी, गाजीपुर, जौनपुर एवं चंदौली और आजमगढ़ मंडल के आजमगढ़, बलिया और मऊ जिले का दौरा करेंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ इन जिलों में हारी बूथों को जीतने की रणनीति कार्यकर्ताओं को समझा रहे हैं।

मैनपुरी में कार्यकर्ताओं के बीच डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक
दोनों डिप्टी सीएम के पास भी अहम जिम्मेदारी
प्रदेश के दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक के पास अहम जिम्मेदारी है। दोनों को 25-25 जिलों के भ्रमण करने हैं। दोनों ने अपने कार्यक्रम शुरू भी कर दिए हैं। केशव प्रसाद मौर्य को कानपुर मंडल के कानपुर नगर, कानपुर देहात, कन्नौज, इटावा, औरैया और फर्रुखाबाद जिले की जिम्मेदारी दी गई है। इसके अलावा वे झांसी मंडल के झांसी, ललितपुर एवं जालौन, चित्रकूट मंडल के बांदा, चित्रकूट, महोबा एवं हमीरपुर, प्रयागराज मंडल के प्रयागराज, कौशांबी, फतेहपुर एवं प्रतापगढ़, मिर्जापुर मंडल के मिर्जापुर, भदोही एवं सोनभद्र और अयोध्या मंडल के अयोध्या, बाराबंकी, अंबेडकरनगर, सुल्तानपुर और अमेठी जिलों का दौरा कर वहां के कार्यकर्ताओं का मोबिलाइज करेंगे।
दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक को गोरखपुर मंडल के गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर और देवरिया जिले की अहम जिम्मेदारी दी गई है। इसके अलावा वे बस्ती मंडल के बस्ती, सिद्धार्थनगर एवं संतकबीरनगर, देवीपाटन मंडल के गोंडा, बलरामपुर, बहराइच एवं श्रावस्ती, आगरा मंडल के आगरा, मथुरा, फिरोजाबाद एवं मैनपुरी, बरेली मंडल के बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर एवं पीलीभीत और लखनऊ मंडल के लखनऊ, रायबरेली, उन्नाव, हरदोई, सीतापुर और लखीमपुर खीरी में पार्टी के कामकाज की बात करेंगे। कार्यकर्ताओं को बूथ जीतने की तकनीक बताएंगे। उनके कार्यक्रम भी शुरू हो चुके हैं।

कानपुर में कार्यकर्ताओं के बीच भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी
रणनीति का अभाव सबसे बड़ी परेशानी
विपक्ष के सामने रणनीति का अभाव सबसे बड़ी परेशानी है। भाजपा सरकार में है। जमीन पर उतर रही है। लोगों के बीच पहुंच रही है। अपनी और सरकार की बात पहुंचा रही है। लेकिन, विपक्षी दल के नेता सोशल मीडिया के भरोसे बदलाव की कोशिशों में जुटे हैं। बूथ और पंचायत तो छोड़िए, कई विकास खंड स्तर पर भी प्रमुख विपक्षी राजनीति दलों का संगठन नहीं दिखता है। ऐसे में जनता के बीच विपक्षी नेता अपने मुद्दों को कैसे पहुंचाएंगे? यह सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है। दिल्ली और लखनऊ में बैठकर रणनीति तैयार तो की जा रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर उन रणनीति के तहत काम करने वालों का अभाव विपक्षी दलों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बना हुआ है। आप देख लीजिए, प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से भाजपा के भूपेंद्र चौधरी लगातार दौरों पर हैं। कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचकर सकारात्मक संदेश दे रहे हैं।
आखिरी के छह माह या तीन माह में कोई चमत्कार के जरिए चुनाव जीता जा सकता तो लोकसभा चुनाव 2019 में सपा और बसपा का प्रभावी गठबंधन का क्या हाल हुआ, देखा जा सकता है। कागजों पर वोट समीकरण के हिसाब से देखें तो सपा के करीब 30 फीसदी और बसपा के 25 फीसदी वोट बैंक मिलाकर जीत का अंतर बड़ा दिखता है। लेकिन, जमीन पर समीकरण को उतारने वाले कार्यकर्ताओं के अभाव ने अंतर पैदा किया। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर विपक्षी राजनीतिक दल इसी प्रकार की गलती दोहराते दिख रहे हैं।