भारत का इतिहास योद्धाओं का है
पीएम मोदी ने विज्ञान भवन में पूर्ववर्ती अहोम साम्राज्य के जनरल लचित बोड़फूकन की 400वीं जयंती पर सालभर आयोजित कार्यक्रमों के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि भारत का इतिहास सिर्फ गुलामी का इतिहास नहीं है। भारत का इतिहास योद्धाओं का इतिहास है, अत्याचारियों के विरूद्ध अभूतपूर्व शौर्य और पराक्रम दिखाने का इतिहास है। भारत का इतिहास वीरता की परंपरा का रहा है।’
भारतीय वीरों का इतिहास दबाया गया
उन्होंने कहा, ‘लेकिन दुर्भाग्य से हमें आजादी के बाद भी वही इतिहास पढ़ाया जाता रहा जो गुलामी के कालखंड में साजिशन रचा गया था। देश के कोने-कोने में भारत के सपूतों ने आतताइयों का मुकाबला किया लेकिन इस इतिहास को जानबूझकर दबा दिया गया।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद जरूरत थी कि गुलाम बनाने वाले विदेशियों के एजेंडे को बदला जाता लेकिन ऐसा नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि ऐसे बलिदानियों को मुख्यधारा में ना लाकर जो गलती पहले की गई उसे सुधारा जा रहा है और लचित बोड़फूकन की जयंती को मनाने के लिए दिल्ली में किया गया यह आयोजन इसी का प्रतिबिंब है।
लचित ने औरंगजेब की सेना को धूल चटाई थी
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश आज गुलामी की मानसिकता को छोड़ अपनी विरासत पर गर्व करने के भाव से भरा हुआ है और भारत ना सिर्फ अपनी सांस्कृतिक विविधता का उत्सव मना रहा है बल्कि अपनी संस्कृति के ऐतिहासिक नायक-नायिकाओं को भी गर्व से याद कर रहा है। मोदी ने कहा कि बोड़फकून ऐसे वीर योद्धा थे, जिन्होंने दिखा दिया कि हर आतंकी का अंत हो जाता है लेकिन भारत की अमर ज्योति अमर बनी रहती है। लचित बोड़फूकन असम के पूर्ववर्ती अहोम साम्राज्य में एक सेनापति थे। सरायघाट के 1671 के युद्ध में उनके नेतृत्व के लिए उन्हें जाना जाता है। इस युद्ध में औरंगजेब के नेतृत्व वाली मुगल सेना का असम पर कब्जा करने का प्रयास विफल कर दिया गया था। इस विजय की याद में असम में 24 नवंबर को लचित दिवस मनाया जाता है। सरायघाट का युद्ध गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के तटों पर लड़ा गया था। सरायघाट का युद्ध गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के तटों पर लड़ा गया था। लचित बोड़फूकन और उनकी सेना की ओर से लड़ी गई यह लड़ाई हमारे देश के इतिहास में प्रतिरोध की सबसे प्रेरणादायक सैन्य उपलब्धियों में से एक है।