सिब्बल ने मंगलवार को जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बी. वी, नागरत्ना की बेंच से कहा, ‘जिस कुर्सी पर आप बैठते हैं, उसके लिए हमारे मन में बहुत सम्मान है, यह एक ऐसी शादी है जिसे बार और बेंच के बीच नहीं तोड़ा जा सकता है। इसे अलग नहीं किया जा सकता। और जब हमें महसूस होता है कि क्या हो रहा है, कभी इस ओर से (बार) तो कभी उस ओर (बेंच) से तो ये मेरे जैसे शख्स को डिस्टर्ब करता है जो अपना पूरा जीवन इस कोर्ट को दे चुका हो।’
सिब्बल ने सपा नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम से जुड़े एक केस की पैरवी करने के दौरान यह बात कही। अब्दुल्ला की विधानसभा सदस्यता दस्तावेजों में उम्र कम करके दिखाने को लेकर रद्द कर दी गई थी। सिब्बल की टिप्पणी पर जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि बार और बेंच रथ के दो पहिए हैं। सिब्बल ने कहा कि वह जीतते हैं या हारते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन संस्थानों में भरोसा धीरे-धीरे कम हो रहा है। इस पर बेंच ने कहा कि हारने वाले पक्ष को भी संतुष्ट होकर वापस जाना चाहिए।
अगस्त में भी सिब्बल ने कुछ इसी तरह सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाए थे। लेकिन तब वह एक कार्यक्रम में बोले थे। उन्होंने कहा था, ‘मैंने यहां 50 साल प्रैक्टिस की है लेकिन अब यह कहने का वक्त आ गया है, अगर हम नहीं कहेंगे तो कौन कहेगा?’ उन्होंने जाकिया जाफरी की याचिका खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए। प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट (PMLA) के प्रावधानों को सही ठहराने वाले फैसले के लिए भी शीर्ष अदालत को आड़े हाथों लिया। दिलचस्प बात यह है कि सिब्बल इन दो मामलों में खुद याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए थे।