रेप पीड़ता, टू-फिंगर और इंसाफ
2015 में दिल्ली सरकार ने अस्पतालों के लिए एक सर्कुलर जारी कर कहा था कि रेप पीड़िता की सहमति के बाद टू-फिंगर टेस्ट किया जा सकता है। आगे कहा गया था कि टू-फिंगर टेस्ट पर संपूर्ण बैन पीड़िता के हेल्थ के लिए हानिकारक हो सकता है और इससे इंसाफ नहीं मिल पाएगा। हालांकि ऐक्टिविस्टों की आलोचना और विरोध के बाद यह सर्कुलर वापस ले लिया गया था। इसके बाद सरकार ने रेप पीड़िताओं के फॉरेंसिंक परीक्षण के दौरान टेस्ट करने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
दिल्ली महिला आयोग की चीफ स्वाति मालीवाल ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट के इस पर रोक लगाने के लिए कहने के बावजूद देशभर में राज्य सरकारें बैन को लागू करने में नाकाम रहीं।
मालीवाल ने कहा, ‘टू-फिंगर टेस्ट बहुत ही पितृसत्तात्मक और अवैज्ञानिक प्रक्रिया है। ऐसा कभी भी नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का वह हिस्सा स्वागतयोग्य है, जिसमें कहा गया है कि यह टेस्ट करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ ऐक्शन लिया जाएगा। हम इस बात के लिए कोर्ट की प्रशंसा करते हैं कि उसने टू-फिंगर टेस्ट को स्टडी मटेरियल से हटाने को कहा है।’ उन्होंने यह भी कहा कि अब सरकारों पर निर्भर करता है कि वे पूरी सख्ती के साथ इस आदेश का पालन सुनिश्चित करें।
सरकारी अस्पतालों की कई महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों का भी कहना है कि पीड़िता की हालत के आधार पर ही यह टेस्ट किया जाता था और वो भी तब जब वह इसके लिए कहती थीं। सरकारी अस्पताल की एक डॉक्टर ने कहा, ‘अगर ऐसे मामले ओपीडी में आते हैं तो हम तभी टेस्ट करते थे जब महिला रेप केस की पुष्टि करने के लिए अनुरोध करती थी। इस प्रक्रिया में दर्द नहीं होता है।’
सरकारी अस्पताल के एक अधिकारी ने बताया कि वजाइना का टेस्ट तभी किया जाता था जब वास्तव में इसकी जरूरत महसूस होती थी। उन्होंने कहा कि काफी कुछ पीड़िता की स्थिति पर निर्भर करता है।
मालीवाल ने कहा, ‘हम इस मामले पर अलर्ट हैं। जागरूकता के कारण पिछले कुछ वर्षों में इसकी शिकायतें नहीं आईं। लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा ऐसी बात कही है तो इसका मतलब है कि ऐसा हो रहा है।’ दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष ने कहा कि हम महिलाओं से कहना चाहते हैं कि अगर उनके साथ टू-फिंगर टेस्ट हुआ है तो उन्हें आगे आकर हमारे साथ मामले को उठाना चाहिए।