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जगजीवन राम के बाद कांग्रेस को दूसरा दलित अध्यक्ष मिलेगा, खड़ने ने मारी वाइल्ड कार्ड एंट्री


नई दिल्ली : कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव में एक के बाद एक नए-नए घटनाक्रम देखने को मिल रहे हैं। अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन पार्टी के वरिष्ठ नेता और दलित चेहरे मल्लिकार्जुन खड़ने ने नामांकन दाखिल कर सभी को हैरान कर दिया। राज्यसभा में विपक्ष के नेता खड़गे ने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद अपना नामांकन दाखिल किया। इससे पहले दिन में दिग्विजय सिंह ने खड़गे से उनके आवास पर मुलाकात की। कहा जा रहा है कि अध्यक्ष पद के लिए गांधी परिवार की शीर्ष पसंद के रूप में खड़गे के उभरने के बाद सिंह दौड़ से हट गए। वहीं, जी-23 का हिस्सा रहे शशि थरूर ने भी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल किया। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 17 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे। 19 अक्टूबर को चुनाव परिणाम की घोषणा होगी। इसके बाद ही साफ होगा कि क्या कांग्रेस को दूसरा दलित अध्यक्ष मिलेगा।

तब जगजीवन राम बने थे दलित अध्यक्ष
खड़गे के चुनाव में उतरने के बाद से यह सवाल है कि क्या कांग्रेस को 51 साल बाद दलित पार्टी अध्यक्ष मिलेगा। इससे पहले बाबू जगजीवन राम 1970 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। जगजीवन राम के राजनीतिक जीवन की बात करें तो वह पांच दशक से अधिक का लंबा रहा। एक छात्र कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करते हुए, वह वर्ष 1936 में 28 वर्ष की छोटी उम्र में बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य के रूप में विधायक बन गए। इसके बाद 1936 में वे डिप्रेस्ड क्लासेज लीग के उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए। उन्हें 10 दिसंबर 1936 को पूर्वी मध्य शाहाबाद (ग्रामीण) निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधान सभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया था। जब 1937 में कांग्रेस की सरकार बनी, तो जगजीवन राम को शिक्षा और विकास मंत्रालय में संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। हालांकि, 1938 में, उन्होंने पूरे मंत्रिमंडल के साथ इस्तीफा दे दिया।

मैं जो लड़ाई हमेशा लड़ते हुए आया हूं और हमेशा लड़ना चाहता हूं। कांग्रेस की विचारधारा के साथ मैं बचपन से जुड़ा हूं, 8 वीं कक्षा में पोस्टर्स चिपकाया करता था।

मल्लिकार्जुन खड़गे, अध्यक्ष के लिए नामांकन दाखिल करने के बाद

1970 से 1972 तक रहे पद पर
जगजीवन राम 1946 में फिर से निर्विरोध चुने गए। 2 सितंबर 1946 को उन्हें अंतरिम सरकार में श्रम मंत्री के रूप में शामिल किया गया। इसके बाद, वह लगभग 31 वर्षों तक केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य बने रहे। 1937 से ही, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक प्रमुख भूमिका निभाई। वे 1940 से 1977 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य थे। 1948 से 1977 तक कांग्रेस कार्यसमिति में थे। वे 1950 से 1977 तक केंद्रीय संसदीय बोर्ड में थे। आजादी के बाद 1970 में वे कांग्रेस के पहले दलित अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे।

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मल्लिकार्जुन खड़गे के पास 50 साल का अनुभव
मल्लिकार्जुन खड़गे भी वरिष्ठ कांग्रेस नेता रहे हैं। उनका राजनीतिक जीवन भी 50 साल से अधिक का है। खड़गे ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कर्नाटक के गुलबर्ग से की थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि उन्होंने अपनी राजनीति पार्टी के लिए पोस्टर लगाने से की थी। 1972 में वह पहली बार विधायक चुने गए। इसके बाद से वह 2008 तक लगातार एमएलए निर्वाचित हुए। 2009 में पार्टी ने उन्हें गुलबर्गा लोकसभा सीट से चुनाव में उतारा। खड़गे को जीत मिली और वह लोकसभा पहुंचे। साल 2014 के दौरान मोदी लहर में भी खड़गे ने अपनी सीट बरकरार रखी। खड़गे नौ बार विधायक रह चुके हैं। खड़गे के परिवार में पत्नी राधाबाई तीन बेटियां और दो बेटे हैं। उनका एक बेटा कर्नाटक के बेंगलुरु में हॉस्पिटल चलाता है। वहीं दूसरा बेटा राजनीति में सक्रिय है।



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By admin