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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को रोड एक्सीडेंट के पीड़ितों को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि अगर एक्सिडेंट में किसी पीड़ित को ऐसी गंभीर इंजरी हुई कि वह स्थायी तौर पर शारीरिक अक्षमता का शिकार हुआ है तो उसके भविष्य की आमदनी की हानि का भी मुआवजा देने के समय आकलन होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया है कि अगर इंजरी ऐसी हो जिससे कि स्थायी तौर पर शारीरिक अक्षमता आ जाए तो फिर ऐसे एक्सिडेंट के मामले में पीड़ित की ओर से भविष्य में होने वाली आमदनी की हानि का मुआवजा मांगा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट के मत से विपरीत मत लिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट ने इस मामले में जो मत लिया है वह संकीर्ण मत है जिसमें कहा गया था कि विक्टिम की मौत के मामले में भविष्य की संभावित आमदनी का आंकलन हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो विक्टिम ऐसे गंभीर इंजरी से गुजरा है जिससे कि उसकी स्थायी शारीरिक अक्षमता हो गई हो तो ऐसे विक्टिम को भविष्य में होने वाली आमदनी की हानि का भी मुआवजा मिलेगा और भविष्य की आमदनी का आंकलन किया जाएगा। हाई कोर्ट ने इस मामले में विक्टिम को 9 लाख 26 हजार रुपये मुआवजा दिए जाने को कहा था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ा दिया और भविष्य की आमदनी की हानि को जोड़कर कुल 21 लाख 78 हजार रुपये मुआवजा दिए जाने का निर्देश दिया।

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह तयशुदा सिद्धांत है कि जब किसी का एक्सिडेंट हो और उस कारण स्थायी तौर पर शारीरिक अक्षमता हो जाए तो भविष्य में आमदनी की जो हानि है उसका भी आंकलन होगा और उसके हिसाब से मुआवजा देना होगा। हमने कई ट्रिब्यूल ऑर्डर और हाई कोर्ट के आदेश देखे हैं लेकिन उन मामलों में यह मत लिया गया है कि ऐसे मामले जिनमें इंजरी के कारण स्थायी तौर पर शारीरिक अक्षमता हुई है उसमें भविष्य की आमदनी की हानि का आंकलन नहीं किया गया है।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की व्यवस्था और मत लेना कानून संगत नहीं है और यह कानून की सही व्याख्या नहीं है। इंजरी के कारण स्थायी तौर पर शारीरिक अक्षमता की शिकार के भविष्य की आमदनी की हानि को मुआवजा की राशि के आंकलन में शामिल न करने का कोई जस्टिफिकेशन नहीं है। सिर्फ मौत के मामले में भविष्य की हानि के आंकलन इस कानूनी प्रावधान की संकीर्ण व्याख्या है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है अदालत को विवेकपूर्ण रवैया रखना चाहिए। गंभीर इंजूरी के कारण स्थायी शारीरिक अक्षमता के कारण गंभीर मानसिक और भावनात्मक हानि होती है। ऐसे विक्टिम को घटना के शिकार होते हैं और शारीरिक तौर पर अक्षम हो जाते हैं उन्हें गंभीर मानसिक अवसाद से गुजरना होता है तो क्योंकि उन्हें पता होता है कि उनकी पैदाइश के बाद जो उन्हें शरीर मिला था उसके विपरीत अब अगल तरह से दुनिया में जीना होगा।

क्या है पूरा मामला
यह मामला बेलगाम का है। पीड़ित गुलगोड-गोलक सड़क पर पैदल जा रहे थे। इसी दौरान 18 जुलाई 2012 को एक गाड़ी ने उन्हें टक्कर मारी। आरोप है कि ड्राइवर ने लापरवाही से गाड़ी चलाई और सड़क के बाईं तरह से जा रहे विक्टिम को उसने टक्कर मारी। इस घटना से पीड़ित 45 फीसदी स्थायी तौर पर शारीरिक अक्षमता का शिकार हो गया। पीड़ित का वर्तन बेचने का कारोबार था। बेलगाम मोटर एक्सिडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल ने पीड़ित को 6 लाख 13 हजार रुपये मुआवजा भुगतान किए जाने का निर्देश दिया। हाई कोर्ट ने 9 लाख 26 हजार रुपये मुआवजा राशि तय की। जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया।



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By admin