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कांग्रेस के विश्वसपात्र मिस्त्री हैं मधुसूदन, जानें क्यों पार्टी करती है इनपर भरोसा


नई दिल्ली : कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव में कई बातें खास रहीं। पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए 22 साल बाद चुनाव कराया गया। पार्टी के इतिहास में यह अध्यक्ष पद का छठा चुनाव था। चुनाव में भाग लेने वाले दोनों प्रतिद्वंद्वियों के अलावा एआईसीसी के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में मधुसूदन मिस्त्री भी समान रूप से चर्चा में रहे। कांग्रेस का विश्वासपात्र चेहरा माने जाने वाले मधुसूदन मिस्त्री ने अपनी निष्पक्ष और असंदिग्ध छवि को बरकरार रखा। उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव संपन्न कराने की अपनी जिम्मेदारी को बखूबी अंजाम दिया। उनकी निष्पक्षता और नियम पालन में सख्ती बरतने का यह आलम था कि उन्हें सहयोगी नेताओं ने ‘पार्टी के टी एन शेषन’ का खिताब दे डाला।

जयराम रमेश ने ‘टीएन शेषन’ से की तुलना
आम तौर पर बहुत समझदारी और सावधानी से अपने शब्दों का चयन करने वाले मिस्त्री ने चुनाव के बाद मीडिया से मुलाकात में इस चुनाव में राहुल गांधी या सोनिया गांधी के हस्तक्षेप की बात को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि चुनाव पूरी तरह लोकतांत्रिक तरीके से बिना किसी दबाव अथवा हस्तक्षेप के संपन्न हुआ। उनकी यह बात उस समय सही साबित हुई, जब कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवार शशि थरूर ने उन्हें ‘निष्पक्ष सोच’ वाला व्यक्ति बताया। उनके चुनावी तेवर इस कदर सख्त थे कि कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मिस्त्री की तुलना पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टी एन शेषन से की। उन्होंने कहा, ‘वह (मिस्त्री) सख्त और ईमानदार हैं तथा निष्पक्ष, स्वतंत्र और पारदर्शी चुनाव कराने में सक्षम हैं।’

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पांच दशक से अधिक का राजनीतिक अनुभव
उन्होंने कहा, ‘मुझे उनके निर्देश के बाद तीन प्रवक्ताओं के इस्तीफे दिलाने पड़े ताकि वे एक उम्मीदवार के लिए प्रचार कर सकें।’ मधुसूदन मिस्त्री का जन्म तीन जनवरी 1945 को अहमदाबाद के असरवा में देवाराम गोपालराम और तुलसी बेन के यहां हुआ। उन्होंने स्थानीय स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के बाद भूगोल में एम.ए. किया। अहमदाबाद में ही कॉलेज व्याख्याता के रूप में कार्य किया। शिक्षण कार्य करते हुए उन्होंने 1969 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार किया। उस समय उनकी छवि एक मजदूर नेता की थी। अगले वर्ष वह शिक्षण छोड़कर पूरी तरह मजदूर नेता के तौर पर सक्रिय हो गए। बाद में वह अहमदाबाद के कपड़ा मजदूर संघ से जुड़ गए।
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ऑक्सफोर्ड से डेवलपमेंट स्टडीज का कोर्स
वर्ष 1977 में मिस्त्री एक स्कॉलरशिप पर ऑक्सफोर्ड गए और वहां डेवलेपमेंट स्टडीज का एक कोर्स किया। 1979 में वापस आने के बाद उन्होंने ऑक्सफेम के साथ फील्ड ऑफिसर के तौर पर पांच साल तक काम किया। 1985 में उन्होंने दलितों, वनकर्मियों, आदिवासी महिलाओं और मजदूरों के कल्याण के लिए एक गैर सरकारी संगठन ‘दिशा’ की स्थापना की। उनके संगठन ने गुजरात में अपने लक्षित समूहों के लिए बेहतरीन कार्य किया। साल 1996 में भाजपा नेता शंकर सिंह वाघेला ने पार्टी से बगावत करके राष्ट्रीय जनता पार्टी (आरजेपी) का गठन किया तो मिस्त्री उनसे जुड़ गए। दो वर्ष बाद जब आरजेपी का कांग्रेस में विलय हुआ तो वह कांग्रेस के सदस्य बने।

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पीएम मोदी के खिलाफ लड़ा था चुनाव
मिस्त्री 2001 में साबरकांठा लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट पर 13वीं लोकसभा में निर्वाचित हुए। इसके बाद वह 2004 में साबरकांठा से 14वीं लोकसभा के भी सदस्य बने और अनेक संसदीय समितियों के सदस्य रहे। वह 2009 का लोकसभा चुनाव इसी सीट पर भाजपा के महेंद्र सिंह चौहान से हार गए। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें वड़ोदरा से नरेन्द्र मोदी के खिलाफ खड़ा किया गया लेकिन उन्हें बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने मिस्त्री को 2014 में राज्यसभा में भेजा। वह राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश के लिए कांग्रेस के प्रभारी महासचिव समेत पार्टी के अनेक पदों पर रहे हैं। आठ साल पहले उनकी चर्चा नरेन्द्र मोदी से रिकॉर्ड मतों से हारने वाले कांग्रेस नेता के रूप में की जा रही थी। आजकल कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव को बेहतरीन ढंग से संपन्न कराने के लिए वह एक बार फिर चर्चा में हैं।



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