आर्य समाज मंदिर में शादी पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
आर्य समाज मंदिर में शादी के बाद क्या करें
आर्य समाज मंदिर में हुई शादी को आर्य समाज वैलिडेशन एक्ट 1937 और हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के अंतर्गत मान्यता दी जाती है। हिंदू, बौद्ध,जैन और सिख व्यक्ति इस मंदिर में शादी कर सकते हैं। दोनों हिंदू हैं तो हिंदू मैरिज एक्ट और अलग धर्म के हैं तो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता दी जाती है। कानूनी जानकारों का कहना है कि आर्य समाज संस्था की ओर से मैरिज सर्टिफिकेट जारी करने का मतलब यह नहीं है कि आपकी शादी को कानूनी मान्यता मिल गई। सर्टिफिकेट लेकर शादी को कानून के तहत SDM ऑफिस या संबंधित विभाग में दर्ज कराना होता है।
आजादी के पहले से अंग्रेजों का बनाया एक्ट
आजादी से पहले अंग्रेजों ने आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट को पारित किया था। साल 1937 में इसे पारित किया गया था। दूसरी जाति में शादी की इजाजत नहीं मिलने पर कई कपल ने आर्य समाज को अपनाया। यहां जाति को लेकर कोई भेद नहीं और लड़का-लड़की अलग जाति के हैं फिर भी उनकी शादी को मान्यता दी जाती है। ऐसी शादी को ही मान्यता देने के लिए आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट लाया गया। इस एक्ट में लिखा गया है कि हिंदू के अलावा किसी धर्म से होंगे तब भी उनका विवाह अमान्य नहीं माना जाएगा। इस एक्ट को को आज भी आर्य समाज मंदिर अपनाते हैं। आम तौर यह भी देखने में आता है कि जहां अलग-अलग जाति होने की वजह से परिवार शादी को राजी नहीं होता वहां प्रेमी जोड़ा आर्य समाज मंदिर में जाकर शादी कर लेता है।
अब इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी आई सामने
आर्य समाज मंदिर की ओर से बड़े पैमाने पर जारी किए जाने वाले विवाह प्रमाण पत्रों की वैधता को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मानने से इनकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि सिर्फ आर्य समाज मंदिर की ओर से विवाह प्रमाण पत्र जारी होने से विवाह साबित नहीं होता है। इससे साफ हो गया है कि अगर शादी को कानूनी रूप से मान्यता देनी है तो उसका रजिस्ट्रेशन भी कराना होगा।