बाद में इनमें से एक नेता ने कहा, ‘यह शिष्टाचार मुलाकात थी। निजी रूप से कई बातें होती हैं जिनके बारे में नहीं बताया जा सकता। इतना जरूर है कि हमने यह जानने का प्रयास किया कि किन कारणों और किन हालात में आजाद साहब को इतना बड़ा कदम उठना पड़ा।’ उन्होंने कहा, ‘हमें इस बात का दुख है कि किस तरह से आरोप-प्रत्यारोप हो रहा है। उम्मीद करता हूं कि अब एक दूसरे पर कीचड़ उछालना बंद होना चाहिए। वरिष्ठ नेताओं का सम्मान होना चाहिए।’
क्या चुनाव प्रक्रिया से संतुष्ट हैं?
यह पूछे जाने पर कि क्या वह कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया से संतुष्ट हैं तो उन्होंने कहा, ‘हमारी मांग थी कि चुनाव हो। दो साल का विलंब हुआ, लेकिन अब चुनाव हो रहा है। हमें सोनिया जी पर भरोसा है। हम लोग तो यही चाहते थे कि कोई भी अध्यक्ष बने, लेकिन चुनाव के जरिए बनना चाहिए। अगर राहुल गांधी जी भी चुनाव के जरिए अध्यक्ष बनते हैं तो अच्छा है।’
आजाद के इस्तीफा देने के बाद चारों नेताओं ने एक साथ पहली बार बैठक की है। गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा और 21 अन्य कांग्रेस नेताओं ने अगस्त, 2020 में बैठक कर सोनिया गांधी को पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने पार्टी को फिर से मज़बूत करने के लिए कई मांग की थी जिनमें संगठन के चुनाव कराने और सक्रिय नेतृत्व की मांग प्रमुख थीं। उनके इस पत्र को कांग्रेस नेतृत्व को चुनौती के रूप में देखा गया।
इस समूह के कई नेता जैसे आजाद, कपिल सिब्बल, जितिन प्रसाद कांग्रेस छोड़ चुके हैं और वीरप्पा मोइली जैसे कुछ नेताओं ने इस समूह से खुद को अलग कर लिया है। आजाद ने पिछले शुक्रवार को पार्टी से नाता तोड़ लिया था। सोमवार को उन्होंने अपने पुराने दल और उसके नेतृत्व पर तीखा प्रहार करते हुए कहा था कि ‘बीमार’ कांग्रेस को दुआ की नहीं, दवा की जरूरत है, लेकिन उसका इलाज कम्पाउंडर कर रहे हैं।