मोदी ने कहा कि पहले ये मानसिकता थी कि भारत मैन्युफैक्चरिंग में बेहतर नहीं कर सकता इसलिए सिर्फ सर्विस सेक्टर पर ध्यान देना चाहिए। आज हम सर्विस सेक्टर भी संभाल रहे हैं और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को भी समृद्ध बना रहे हैं।
मोदी ने कहा कि दुनिया का सबसे तेजी से विकसित होता एविएशन सेक्टर आज भारत में है। एयर ट्रैफिक के मामले में हम दुनिया के टॉप तीन देशों में पहुंचने वाले हैं। आने वाले 10-15 सालों में भारत को करीब 2000 से ज्यादा पैंसेजर और कार्गो एयरक्राफ्ट की जरूरत होगी, इस डिमांड को पूरा करने के लिए भारत अभी से तैयारी कर रहा है। मोदी ने कहा कि यह विश्व के लिए भी संदेश है। कोरोना और युद्ध से बनी परिस्थितियों के बावजूद, सप्लाई चेन में रुकावटों के बावजूद, भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का ग्रोथ मोमेंटम बना हुआ है। भारत लो कॉस्ट मैन्युफैक्चरिंग और हाई आउटकम का अवसर दे रहा है।
डिफेंस और एरोस्पोस सेक्टर आत्मनिर्भर भारत के अहम पिलर होंगे
पीएम ने कहा कि आने वाले दिनों में डिफेंस और एरोस्पोस सेक्टर आत्मनिर्भर भारत के दो अहम पिलर होंगे। 2025 तक डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग में हमारा लक्ष्य 25 बिलियन डॉलर को पार करना है। हमारा डिफेंस एक्सपोर्ट भी बढ़कर पांच बिलियन डॉलर हो जाएगा। पिछले साल सितंबर में 56 C-295 एयरक्राफ्ट के लिए रक्षा मंत्रालय ने स्पेन की कंपनी एयरबस के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था। कुल 56 एयरक्राफ्ट में से 16 एयरक्राफ्ट स्पेन से फ्लाई वे कंडीशन में आएंगे यानी ये पूरी तरह तैयार होकर उड़ान भरने की कंडीशन में एयरफोर्स को मिलेंगे। ये 23 सितंबर 2023 से 23 अगस्त 2025 के बीच आएंगे। बाकी 40 एयरक्राफ्ट भारतीय कंपनी टाटा कंसोर्टियम यही बनाएगी। ये 40 एयरक्राफ्ट भारत में सितंबर 2026 से अगस्त 2031 तक बनेंगे। पहली बार कोई भारतीय प्राइवेट कंपनी मिलिट्री एयरक्राफ्ट बनाएगी। और ऐसा पहली बार है जब एयरबस इसे यूरोप से कहीं बाहर बना रही है।
इंडियन एयरफोर्स काफी वक्त से एव्रो एयरक्राफ्ट को बदलने की जरूरत बताती रही है। एव्रो ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट एयरफोर्स में सबसे पहले 1960 में इंडक्ट हुए थे। नए C-295 एयरक्राफ्ट एव्रो को तो रिप्लेस करेंगे। एयफोर्स को मिलने वाले ने ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट C-295 की कपैसिटी 5-10 टन है। इसमें रियर रैंप डोर है जिससे क्विक रिएक्शन हो सकता है और सैनिक और कार्गो के पैरा ड्रॉप के लिए इसका इस्तेमाल होता है। इस ट्रांसपोर्ट एयरक्राप्ट में 71 सैनिक आ सकेंगे। अगर पैराट्रूपर्स की बात करें तो इस एयरक्राफ्ट में एकसाथ 44 पैराट्रूपर्स आ सकेंगे।
इन सभी 56 एयरक्राफ्ट में स्वदेशी इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सूट लगा होगा। ये एयरक्राफ्ट उन जगहों से भी उड़ान भर सकेगा जहां प्रॉपर रनवे नहीं हैं। हमारे बॉर्डर में जिस तरह की टेरेन है, ये वहां के लिए मुफीद हैं।
बदल जाएगी भारत की डिफेंस इंडस्ट्री की सूरत
टाटा ने सात राज्यों से 125 से ज्यादा एमएसएमई की पहचान की है जो अलग अलग पार्ट्स सप्लाई करेंगे। इससे देश में रोजगार भी बढ़ेगा। इससे सीधे करीब 600 हाई स्क्लिड जॉब जनरेट होंगी और 3000 से ज्यादा इंडायरेक्ट जॉब। करीब 240 इंजीनियर्स को स्पेन में एयरबस की फैसिलिटी में ट्रेंड किया जाएगा। इससे भारत की डिफेंस इंडस्ट्री की सूरत भी बदल जाएगी। भारत अब यूएस, यूके, फ्रांस, स्पेन, जर्मनी सहित चुनिंदा देशों के उस ग्रुप में शामिल हो गया है जहां प्राइवेट कंपनियां मिलिट्री एयरक्राफ्ट बना रही हैं। अब तक भारत में सिर्फ डिफेंस पीएसयू हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ही मिलिट्री एयरक्राफ्ट बनाती है। यह भारत की डिफेंस इंडस्ट्री को एक नया मुकाम देगा और रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया की गति को गुना बढ़ा देगा। यह इसलिए भी अहम है क्योंकि एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग अभी तक एक अलीट ग्रुप के रहा है। भारत की प्राइवेट इंडस्ट्री की इसमें एंट्री से कई नई राहें खुलेंगी। भारत काफी वक्त से यह सपना देख भी रहा है कि रक्षा क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बने। केंद्र सरकार लगातार इसे बढ़ावा भी दे रही है और प्राइवेट इंडस्ट्री और स्टार्टअप्स को प्रमोट भी कर रही है।
यह एयरक्राफ्ट मिलिट्री परपज के अलावा सिविलियन परपज में भी इस्तेमाल हो सकता है और इसे पैसेंजर कैरी करने और कार्गो के लिए सर्टिफाई किया गया है। मिलिट्री एयरक्राफ्ट सहित मिलिट्री प्रॉडक्ट्स का एक बहुत बड़ा मार्केट है। 2001 से 2020 के बीच दुनिया भर में मिलिट्री पर हुआ खर्च 74 पर्सेंट बढ़ा है और 2020 में यह दो ट्रिलियन यूएस डॉलर से कुछ ही कम रहा। मिलिट्री एयरक्राफ्ट और एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग मार्केट भी तेजी से बढ़ी है। साल 2021 में अनुमान लगाया गया कि ग्लोबल मिलिट्री एयरक्राफ्ट और एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग मार्केट करीब 255.8 बिलियन यूएस डॉलर की है।
जानकारों का कहना है कि मिलिट्री एयरोस्पेस इक्विपमेंट या एयरक्राफ्ट बनाने के लिए जिस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए, हाइली स्किल्ड लेबर फोर्स चाहिए और जिस तरह का इंवेस्टमेंट चाहिए वैसा हर देश कर नहीं कर सकता। साल 2020 में यूएस, फ्रांस, जर्मनी सबसे बड़े एयरोस्पेस एक्सपोर्टर रहे। इस दौरान यूएस, चीन, भारत, रूस और यूके ने मिलिट्री पर सबसे ज्यादा खर्च किया।