हाइलाइट्स
- यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ गोरक्ष पीठ के हैं पीठाधीश्वर
- महंत होने के बावजूद उन्होंने कई अंधविश्वास और मान्यताओं को तोड़ा
- नोएडा जाने वाले सीएम की कुर्सी चली जाती है, यह भ्रम नोएडा जाकर तोड़ा
- वाराणसी में चंद्र ग्रहण के सूतककाल में किया भोजन
- अब अपने नए मंत्रियों को पितृपक्ष में दिलाई शपथ
योगी आदित्यनाथ। यूपी के मुख्यमंत्री और गोरक्ष पीठाधीश्वर। हिंदुत्व का प्रखर चेहरा माने जाने वाले सीएम योगी आदित्यनाथ वक्त-वक्त पर रूढ़ियों को तोड़ते हुए नजर आते हैं। कैबिनेट विस्तार के दौरान भी इसकी नजीर दिखी, जब उन्होंने पितृपक्ष में अपने मंत्रियों के शपथ दिलाई। पिछले साढ़े चार साल के दौरान ऐसे कई मौके आए हैं, जब योगी ने लीक से हटकर कदम बढ़ाया है
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से चंद महीने पहले योगी कैबिनेट का विस्तार हुआ है। इस विस्तार में सात नए चेहरों को जगह मिली है। रविवार को योगी के नए मंत्रियों ने शपथ ग्रहण की। शपथ ग्रहण का आयोजन राजभवन में किया गया।
पितृपक्ष में मंत्रियों ने ली शपथ
कहा जाता है कि किसी भी नए काम की शुरुआत पितृपक्ष से नहीं की जाती है। कोई भी शुभ कार्य हिंदुओं में पितृपक्ष में करना प्रतिबंधित होता है। ऐसे में नया और अच्छा काम पितृ पक्ष में करना अशुभ माना जाता है लेकिन योगी ने अपने नए मंत्रियों को पितृपक्ष में शपथ दिलाई।
सीएम बनते ही पहुंचे थे नोएडा
ऐसा पहली बार नहीं है जब योगी ने अंधविश्वास या रुढिवादिता तोड़ी हो। इससे पहले भी वह इस तरह की रुढ़िवादी परंपराओं को तोड़ते रहे हैं। पहली बार उन्होंने इस अंधविश्वास को तोड़ा कि नोएडा जाने वाले सीएम का कुर्सी छिन जाती है।
2017 में सीएम बनने के 6 महीने में ही योगी नोएडा गए थे। वह 25 दिसंबर 2017 को नोएडा पहुंचे और इस अंधविश्वास को तोड़ा कि यहां जो भी मुख्यमंत्री जाता है उसकी कुर्सी चली जाती है।
29 साल के डर का अंधविश्वास तोड़ा
नोएडा को लेकर अंधविश्वास तब जुड़ा जब कांग्रेसी मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह 23 जून 1988 को नोएडा गए। इसके अगले दिन परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उनको अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। यहीं से अंधविश्वास पनप गया कि जो भी नोएडा जाता है उसकी कुर्सी चली जाती है। वीर बहादुर सिंह के बाद नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह से लेकर अखिलेश यादव तक मुख्यमंत्री बने लेकिन नोएडा सबको डराता रहा।
मायावती ने दिखाया था दम
मायावती जब चौथी बार पूर्ण बहुमत की सरकार के साथ मुख्यमंत्री बनी तो उन्होंने 14 अगस्त 2011 को इस अंधविश्वास के डर से लड़ने का फैसला किया। वह नोएडा में करीब 700 करोड़ रुपये की लागत से बने दलित प्रेरणा पार्क का उद्घाटन करने गईं। हालांकि, अगले वर्ष सियासी हालात बदले और उनकी कुर्सी चली गई। लोगों ने इसे उनके नोएडा जाने से जोड़ दिया। शानदार बहुमत की सरकार के साथ सत्ता में आए अखिलेश यादव नोएडा की योजनाओं का बटन लखनऊ में अपने 5, कालिदास स्थित आवास से ही दबाते रहे।
चंद्र ग्रहण के सूतक काल में किया भोजन
नोएडा का अंधविश्वास तोड़ने के एक महीने बाद योगी 31 जनवरी 2018 को वाराणसी पहुंचे। यहां उन्होंने एक और भ्रम तोड़ा। यह भ्रम था चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण में भोजन न करने का। संत रविदास जयंती पर चंद्रग्रहण के बीच मंदिर में मत्था टेंकने के बाद योगी ने संगत में बैठकर प्रसाद ग्रहण किया। काशी में सीएम योगी ने जिस मिथक को तोड़ा वह ग्रहण पर लगने वाले सूतक को लेकर था। चंद्रग्रहण के सूतक के दौरान अन्नग्रहण नहीं किया जाता है। ग्रहण के दौरान सूतक काल में सदियों से चले आ रहे इस मिथक को सीएम ने तोड़ा।
आगरा के सर्किट हाउस में रुककर तोड़ा था मिथक
नोएडा व ग्रेटर नोएडा जाने के बाद कल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ताजनगरी में भी एक बड़ा मिथक तोड़ा। सीएम योगी आगरा में सर्किट हाउस में रुके। इनसे 16 वर्ष पहले राजनाथ सिंह बतौर मुख्यमंत्री सर्किट हाउस में रुके थे। प्रदेश के सीएम की कुर्सी जाने के भय के कारण न तो मायावती और न ही अखिलेश यादव यहां के सर्किट हाउस में रुकते थे।
जनवरी 2018 में ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आगरा के सर्किट हाउस में रुके। 16 साल के बाद ऐसा हुआ जब कोई सीएम आगरा के सर्किट हाउस में रुका था। उनसे पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह सर्किट हाउस में रुके थे। मायावती ने कभी आगरा में रात नहीं बिताई तो अखिलेश हमेशा यहां के होटलों में रुके।
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योगी आदित्यनाथ