देश में जब सैनिक स्कूलों में बेटियों के लिए दरवाजे खुल गए हैं तो कुछ मजहबी संगठनों को उनके ‘को-एड’ स्कूलों में भी पढ़ने पर ऐतराज है। वो देश में तालिबानी ‘तौर-तरीकों’ की पैराकारी करते दिख रहे हैं। सोमवार को जमीयत उलेमा-ए-हिंद (जेयूएच) के अध्यक्ष अरशद मदनी की अपील में भी कुछ इसी तरह की सोच दिखाई दी।
मदनी बोले- बनाए जाएं अलग शिक्षण संस्थान
जेयूएच की कार्यसमिति की बैठक के बाद सोमवार को जारी एक प्रेस बयान में मदनी बोले, ‘अनैतिकता और अश्लीलता किसी धर्म की शिक्षा नहीं है। दुनिया के हर धर्म में इसकी निंदा की गई है, क्योंकि यही चीजें हैं जो देश में दुर्व्यवहार फैलाती हैं। इसलिए, हम अपने गैर-मुस्लिम भाइयों से भी कहेंगे कि वे अपनी बेटियों को अनैतिकता और दुर्व्यवहार से दूर रखने के लिए सह-शिक्षा देने से परहेज करें और उनके लिए अलग शिक्षण संस्थान स्थापित करें।’
कार्यसमिति की बैठक के दौरान बालक-बालिकाओं के लिए स्कूल-कॉलेजों की स्थापना, विशेष रूप से लड़कियों के लिए धार्मिक वातावरण में अलग-अलग शिक्षण संस्थान और समाज में सुधार के तरीकों पर विस्तार से चर्चा की गई।
मदनी ने कहा कि आज की स्थिति में लोगों को अच्छे मदरसों और उच्च धर्मनिरपेक्ष शिक्षण संस्थानों की जरूरत है, जिसमें बच्चों को शिक्षा के समान अवसर प्रदान किए जा सकें। मुसलमानों को अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर उच्च शिक्षा से लैस करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हमें ऐसे स्कूलों और कॉलेजों की सख्त जरूरत है, जहां हमारे बच्चे, खासकर लड़कियां बिना किसी बाधा या भेदभाव के उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें।’
क्या भूल गए मदनी?
अफगानिस्तान में बेटियों को बेटों से अलग शिक्षा देने के कदम की जानकारों ने तीखी निंदा की थी। कहा गया कि यह कदम लड़कियों को उच्च शिक्षा लेने से वंचित करेगा। इस तरह के कदम की भारत में तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पहले ही देश में क्वालिटी स्कूल और कॉलेजों की कमी है। मदनी अपील करते हुए शायद भूल गए कि यह अफगानिस्तान नहीं हिंदुस्तान है। मदनी के इस बयान का यह भी मतलब निकलता है कि क्या सह-शिक्षण संस्थानों में अश्लीलता पढ़ाई जाती है।
सैनिक स्कूलों के खुल गए हैं दरवाजे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 75वें स्वतंत्रता दिवस पर देश को संबोधित करते हुए एक बड़ा ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि देश की बेटियां अब किसी भी सैनिक स्कूल में एडमिशन के लिए आवेदन कर सकेंगी। यानी देश के सभी सैनिक स्कूलों के दरवाजे अब उनके लिए भी खुलेंगे। प्रधानमंत्री बोले थे, ‘यह देश के लिए गौरव की बात है कि शिक्षा हो या खेल, बोर्ड्स के नतीजे हों या ओलिंपिक का मेडल, हमारी बेटियां आज अभूतपूर्व प्रदर्शन कर रही हैं। आज भारत की बेटियां अपना स्पेस लेने के लिए आतुर हैं। मुझे लाखों बेटियों के संदेश मिलते थे कि वे भी सैनिक स्कूल में पढ़ना चाहती हैं, उनके लिए भी सैनिक स्कूलों के दरवाजे खोले जाएं।’
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