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Supreme Court said, Court should enquire into antecedents of accused while considering bail: SC की अदालतों को सलाह… जमानत देते समय आरोपी का बैकग्राउंड जरूर चेक करें


नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने जमानत से जुड़ी याचिकाओं पर फैसला करते समय अदालतों को खास एहतियात बरतने की सलाह दी है। शीर्ष न्‍यायालय ने कहा है कि अदालतों को यह पता लगाने के लिए किसी आरोपी के पिछले जीवन की पड़ताल करनी चाहिए कि क्या उसका खराब रिकॉर्ड है और क्या वह जमानत पर रिहा होने पर गंभीर अपराधों को अंजाम दे सकता है।

जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की ओर से हत्या और आपराधिक साजिश के आरोपों का सामना कर रहे एक व्यक्ति को दी गई जमानत को रद्द करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

पीठ ने कहा कि जमानत याचिकाओं पर फैसला करते हुए आरोप और सबूत की प्रकृति भी अहम बिंदु होते हैं। दोषसिद्धि के मामले में सजा की गंभीरता भी इस मुद्दे पर निर्भर करती है।

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अपने पहले के आदेशों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि जमानत से इनकार कर स्वतंत्रता से वंचित रखने का मकसद दंड देना नहीं है बल्कि यह न्याय के हितों पर आधारित है।

न्यायालय ने कहा, ‘जमानत के लिए आवेदन देने वाले व्यक्ति के पिछले जीवन के बारे में पड़ताल करना तार्किक है ताकि यह पता लगाया जाए कि क्या उसका खराब रिकॉर्ड है, खासतौर से ऐसा रिकॉर्ड जिससे यह संकेत मिलता हो कि वह जमानत पर बाहर आने पर गंभीर अपराधों को अंजाम दे सकता है।’

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सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणियां पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए कीं, जिसमें उसने जालंधर के सदर पुलिस थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र), 34 (साझा मंशा), 201 (सबूत मिटाना) और शस्त्र कानून, 1959 की धारा 25 के तहत प्राथमिकी के संबंध में आरोपी को जमानत दी।

पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने आरोपों की प्रकृति और दोषसिद्धि के मामले में सजा की गंभीरता और सबूतों की प्रकृति पर विचार नहीं किया।

सुप्रीम कोर्ट



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